tilak kare raghuveer

वही हो नाव वही हो धारा
पर क्या अगली बार न होगा सुंदर और किनारा !

छूटें  भी जो रत्न बटोरे
मोती जिनमें जलधि हिलोरे
पर मन के कागज़ भी कोरे

होंगे सभी दोबारा !

संचित ज्ञानराशि  जीवन की
यह नित-विकसित छवि चेतन की
लय होगी लपटों में तन की !

      श्रम निष्फल है सारा !

गत जन्मों के तप जो जागे
बढ़ते क्या न रहेंगे आगे
जब तक मन विश्राम न माँगे

पाकर परस तुम्हारा

वही हो नाव वही हो धारा
पर क्या अगली बार न होगा सुंदर और किनारा !