tilak kare raghuveer

विवशता है ये तानें मेरी
काँप रही हो ध्वनि, मन में तो गूँज रही धुन तेरी

लोग पूछते हैं मुझसे यह
‘क्यों अब भी गाने का आग्रह
जब न प्रखर आलोक रहा वह

आती रात अँधेरी?’

कब उनको समझा पाया मैं
अब तक भी हूँ अनगाया मैं
जो भी धुन लेकर आया मैं

जड़ता से थी घेरी

प्राणों में जो सुर जागे अब
क्यों न सुना दूँ जग को वे सब
पता नहीं, चुपके से आ, कब

मारे बाण अहेरी

विवशता है ये तानें मेरी
काँप रही हो ध्वनि, मन में तो गूँज रही धुन तेरी