tujhe paya apne ko kho kar
हुए जो कालजयी कवि आगे
उनसे ही मैंने ये कुछ वरदान स्नेह के माँगे
दिये किसी ने वीणा के स्वर
कलम किसी ने कागज़ सुन्दर
और किसी की पदरज पाकर
राग हृदय के जागे
ताप झेल बाड़व-ज्वाला के
मोती ये पाये माला के
अश्रु किसी विरहिन बाला के
पलकों पर हूँ टाँगे
जो भी दृश्य सामने आता
यदपि स्वप्न-सा मिटता जाता
मैं शब्दों में अमर बनाता
जो क्षण जाते भागे
हुए जो कालजयी कवि आगे
उनसे ही मैंने ये कुछ वरदान स्नेह के माँगे