usar ka phool
दृगों को कर गयी शीतल किसीके रूप की ज्वाला
किसीकी दूध-सी चितवन
गयी मन को बता उन्मन
समाया साँस में आकर
किसीकी साँस का स्पंदन
पुलक बरसा गया कुंतल किसीका मेघ-सा काला
किसीके वक्ष की हलचल
मिलन की बन गयी पायल
अरुणिमा गौर अंगों की
सुरा की धार-सी झलमल
हृदय को कर गयी चंचल उड़ा अंचल सुरभिवाला
किसीके स्नेह की काया
किसीका भाव अलसाया
गयी छू प्राण के स्तर-स्तर
किसीके प्राण की छाया
किसी के नेत्र दो छलछल, गले की बन गये माला
दृगों को कर गयी शीतल किसीके रूप की ज्वाला
1946