usar ka phool
मैं फिर एक उड़ान भरूँगा!
बाज-सदृश नभ की दिशि उड़ता
कभी न झुक पीछे को मुड़ता
जाऊँगा विद्युत-सा जुड़ता
कज्जल मेघों से, फिर उनको क्षण में पार करूँगा
तम में तिरता लघु प्रदीप-सा
पहुँच स्वर्ग-भू के समीप-सा
देखूँगा वह ज्योति-द्वीप-सा
जिसके शून्य कनक-तट पर डरता-डरता उतरूँगा
उस स्थल से मुझको यह धरती
दीखेगी रवि – कोटरवर्ती
मधुमक्खी-सी भन-भन करती
जड़े इंदु का नीले मस्तक पर चमकीला मूँगा
मैं फिर एक उड़ान भरूँगा!
1945