usha
छाया कैसा यह इंद्रजाल
किसने यों बाँध दिया मुझको निःश्वासों की मोहिनी डाल?
मैं यात्री चिर-अनंत पथ का
शत संसृतियों के इति-अथ का
गति जीवन कहलाती रथ का
स्थिरता पल भर के लिये काल
जीवन का पकड़े मरण हाथ
संसृति-तट के युग शिशु अनाथ
चलते युग-युग से साथ-साथ
रवि-शशि-सा उन्नअत किये भाल
में इससे कैसे द्रोह करूँ!
उससे क्योंड इतना मोह करूँ!
दोनों से मिलन-विछोह करूँ
दोनों में निज को सकूँ ढाल
छाया कैसा यह इंद्र-जाल?
किसने यों बाँध दिया मुझको निःश्वासों की मोहिनी डाल?