प्रेम-कालिन्दी_Prem Kalindi
- अब इस शेष विदा के क्षण में
- अब तो स्वरमय प्राण हमारे
- अब मेरी पीड़ा से खेलो
- अब ये गीत तुम्हारे
- अश्रुकण झड़ते रहे, प्रिय !
- आँखें
- आज की रात
- आज तो पूनो मचल पड़ी
- इतनी उलझन क्यों आनन पर
- इस जलते जीवन का प्रमाद
- इस दुर्बल तन के मिटने पर
- इस पार कौन ? उस पार कौन?
- इस मधुर स्वप्न का कहीं अंत
- उनकी हँसी
- एक गाँव में रहते हम-तुम
- एक दिन वासंती संध्या में
- ओ चारुशीले !
- ओ पिया ! दुःख की अँधेरी रात में ही
- ओ पिया ! मुझे फिर वैसा ही कर दे
- कभी फिर होगा मिलन तुम्हारा ?
- कहाँ जायेंगे सपने मन के ?
- कागज की लिखावट
- कामरूप
- क्या मैंने तुम्हारे नाम को हवाओं पर नहीं लहरा दिया
- क्या है इस मन में !
- कितना अच्छा होता
- किसीकी ओर मत देखो
- कैसे कह दूँ, था संयोग
- कैसे मिले प्राण-प्राणों से
- कोई जा रहा सवेरे-सवेरे
- कोयल की कुहुक का यहीं अंत है
- कौन पहला अपना रुख मोड़े ?
- कौन सी पहचान होगी
- खिल-खिल कर हँसती हो जब तुम
- गिरा, खोया हुआ जैसे कहीं, कुछ पा गया हूँ मैं
- गीत बनकर ही अधर के पास आना चाहता हूँ
- गुम्फन
- चली आओ
- चाँदनी कलि-सी खिलती जाती
- चाँदनी जलविहार को उतरी
- चाँदनी मेरे नंदन की
- चाँदनी तारों पर फिरती
- चाँदनी वन के बीच खिली
- चाँद से रूठ गयी चाँदनी
- जब तक तुम नहीं मिली थी
- जब तुम मुझे देख लेती हो
- जब न रहूँगा मैं
- जब भी नाम हमारा आये
- जब मुझे जाना ही है तो फिर हँस कर विदा करो
- जब मैं अंतिम साँस खींच
- जब यह जीवन फिर पायेंगे
- जागरिता
- जी करता है आँखे मूँदूँ
- जीवन एक दीप ही तो है
- ज्योत्स्ना उर-उर की उर्वशी
- तारों की सज आरती
- तीन चित्र
- तुम
- तुम इतनी सुन्दर हो
- तुमको छोड़ चला जाऊँगा
- तुम कौन पिकी सी रही बोल ?
- तुम प्रेम न इतने बनो क्रूर
- तुम्हारा पत्र
- तुम्हारी चेतना के तीर पर प्यासा खड़ा हूँ मैं
- तुम्हारे रूप-मधुवन में समीरण मैं बनूँ तो क्या !
- तुम्हें देखे कितने दिन हुए
- दान
- दुहराने से नहीं ऊबना है
- देह नहीं देहेतर से मैं करता प्यार रहा हूँ
- दृगों को कर गयी शीतल किसीके रूप की ज्वाला
- धरती और आकाश के बीच की समस्त संपदा
- नहीं है नया हमारा प्यार
- नीली साड़ी पहने तुम चाँदनी रात सी
- पथ के अंतिम मोड़ पर
- प्रतिबिम्ब तो झील की नील लहरों में
- प्रथम दर्शन
- पावस-प्रिया
- पास-पास ही रहिये
- पास रहकर भी कितनी दूरी !
- प्राण-वीणा को सुनहले तार जब खुलने लगेंगे
- फिर होगा जीवन का विचार
- फूल मुरझा गए देखते देखते
- बहने दो जीवन को अबाध
- बात अधरों की हुई न पूरी
- बातचीत
- माना कि आज
- मिलेंगे फिर भी यदि जीवन में
- मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए
- मुझे भुला ही देना
- मुझे शब्द नहीं मिलते
- मुझे स्वीकार मत करना
- मेरा चित्र तुम्हारे कर में
- मेरी कविता में अपनी छाया देखकर
- मेरे और तुम्हारे बीच में
- मेरे गीत तुम्हारे ही तो हैं
- मेरे चारों ओर रंगीन तितलियाँ उडती हैं
- मेरे जाने की वेला है
- मेरे जीवन का इतिहास
- मेरे लिए प्रतीक्षा मत करना
- मेरे शब्द होठों पर आकर अटक गए है
- मैं तो केवल तुम्हें चाहता हूँ
- मैं फिर भी यहाँ आऊँगा
- मैं फिर यहीं खिलूँगा
- मैंने क्या कुछ नहीं कहा है
- मैंने गीत लिखे जिस सुर में
- मैंने जितना प्यार किया है तुमको
- मैंने तुम्हें वहां से ग्रहण किया है
- मैंने बरबस होंठ सिये थे
- मैंने रंग-रंग के फूल बिछाए हैं
- मोल नहीं लूँगा इन क्षणों का
- मृत्यु
- यदि किसी सागर परिवेष्ठित द्वीप पर
- यदि तुम्हारा जी चाहता है
- यह इतिहास अनंत एक लघु क्षण में ले लो
- यह कैसी विडंबना है
- यह जानकार क्या होगा
- यह मेरे मन का अन्धकार
- यह सच है
- यह सही है
- यों तो कितनी ही बार
- रात, तुम्हारे कर में
- रोते-रोते चुका नयन का पानी
- विरहिनी
- विरही
- वे आँखें
- वैराग्य के सभी सूत्र मैंने घोंट डाले हैं
- शाश्वत सौन्दर्य
- सहन नहीं है विरह भी क्षण का
- साथ भी सदा न हम रह पायें
- सुन्दरता और कविता
- हमारा प्यार अधूरा है
- हमारे वे दिन बीत गये
- हमारे सपने बिखर गये
- हर विषपान के बाद