aayu banee prastavana
मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए
जलते मरु-सा जीवन जलता
आस न फलती, जोर न चलता
पल-पल, पागल प्राण मचलता
झम-झम करती प्रीति-घटा बन बरस पड़े वह मेंह चाहिए
रात-रात भर जागीं पलकें
रहीं गूँथती तम की अलकें
लोचन अब छलकें, तब छलकें
ऐसे में हलके पगतल के नूपुर बजते गेह चाहिए
जलता हृदय हाथ में ले ले
हँस-हँस कसते बंधन झेले
ऐसे तुम ही एक, अकेले
फूलों की माला अलसायी, मुझे फूल-सी देह चाहिए
मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए
1958