ahalya
हँस पड़े पितामह दुग्ध-धवल दाढ़ी समेट
बेटा! ललाट का लिखा कौन कब सका मेट!
मैं स्वयं कमल-धृत-बिंदु, सिन्धु से नहीं भेंट
इस महायंत्र को कब जाने किसने उमेठ
धर दिया शून्य-सागर में?
‘एकोऽहम् बहुस्याम’ कब किसने मन्त्र बोल
नीरव अनंत में दिए कल्प दृग-कमल-खोल
मैं हार गया रचते-रचते शत-शत खगोल
दिखता न अंत, माया- छाया-सी रही डोल
लय- सृजन लिए युग कर में