ahalya
‘वल्कल के वसन, अशन-आश्रम-फल-कंद-मूल
मृगशिशु-सहचर, आभरण-मनहरण-चरण-धूल
प्रभु-स्मिति से जायेंगे पल में सब शोक भूल
मैं अमरबेलि-सी स्नेह-पवन में फूल-फूल
जड़ को चेतन कर दूँगी
दिन भर तप कर रवि-से लौटोगे, जभी गेह
मैं संध्या-सी देहरी-दीप में भरे स्नेह
अर्पित कर दूँगी यह नामांकित सुमन-देह
मैं बरस, बिखर, जैसे पावस का प्रथम मेंह
अंतर मधु से भर दूँगी’