ahalya

आँगन में सहसा फैल गया दिन-सा प्रकाश
चकवी ने माँगी विदा प्राणधन से उदास
बुझ गये नखत, विरहिनियां सोयीं भग्न-आश
शिर-रतन-मुकुट, कुक्कुट, प्लुत-स्वर, पंडिताभास
बोला कुटीर से सटकर

पट अस्त-व्यस्त जैसे सरिता की लोल लहर
ढीले भुज-बंधन से हँस निकली प्रिया सिहर
लज्जित मुनि-पुंगव देख ब्राह्म चेतना-प्रहर
प्रज्वलित शिखा के पास शलभ ज्यों जाय ठहर
हो गये खड़े कुछ हटकर