ahalya
नृप कह न सके कुछ रुद्ध-कंठ, बस इंगित से
युग वत्स बुलाकर पास स्नेह-कातर चित से
मुनि के चरणों में सौंप दिये संकल्पित-से
ले बिदा साश्रु माताओं से आये स्मित-से
द्रुत राम-लखन जाने को
रह गयी सभा खोयी-सी, सैन्यप, सचिव विकल
नारियाँ गवाक्षों से तकती मुख-छवि अचपल
विप्रों ने दिया शुभाशिष, भाल-तिलक-मंगल
नृप-चेतनता, गुरु-स्नेह, बंधु-सुख, प्रजा सकल
सँग चली फिरा लाने को