ahalya

‘नर-तनु निष्फल पर-हित में नहीं लगाया जो
जीवन क्या है दुखियों के काम न आया जो!
विजयी, निज-पर की तोड़ सका दृढ माया जो
त्यागा जिसने संसार, उसी का पाया हो”
मैं यही सिखाने आया

‘हो अभय, मुक्त जग, रहे न कोई विफल-काम
प्रतिजन मुझमें, प्रतिजन में मैं रम रहा राम
मैं धरती पर रचकर नूतन वैकुण्ठ-धाम
नर को नारायण का कैसे मिल सके नाम
वह मार्ग दिखाने आया’