ahalya
रवि-शशि-से मन की चपल वृत्ति में बँधे आप
किसके मानस में उदित न होते पुण्य-पाप!
गिर-गिर कर उठना चेतनता का यही माप
जन-जीवन पर बस उसी पुरुष की पड़ी छाप
जो कभी न दुख से हारा
जो तिल-तिल जलता गया, किन्तु बुझ सका नहीं
जो पल-पल लड़ता गया, कष्ट से थका नहीं
जो रुका न पथ पर, भय-विघ्नों से झुका नहीं
जो चूक गया फिर भी निज को खो चुका नहीं
जन वही मुझे है प्यारा