bali nirvas

यदि स्वर्ग कहीं है त्रिभुवन में तो वह मेरे ही उर में है
कोमल मृणाल-से बाहुबंध
उड़ती अलके ज्यों मधुप अंध
लहराती मेरे अंगों में
यौवन की मांसल स्वस्थ गंध
नंदन जैसे सुरपुर में है
मैं लिये रूप की निर्मलता
स्मित अधर, विनत भ्रू-कल्पलता
मंथित जलनिधि से उगी व्योम पर
जलद वधू-सी नृत्यरता
बिजली जिसके नूपुर में है
अंतर में सपनों की क्रीड़ा
मैं यौवन की शास्वत पीड़ा
जब भी जय की अभिलाषा ने
पौरुष के तारों को मीड़ा
कंपन मेरे ही सुर में है
यदि स्वर्ग कहीं है त्रिभुवन में तो वह मेरे ही उर में है