bali nirvas
मधुकर यह उपवन क्यों भूले
नंदन भी कुम्हलाये इसकी छाया जो छू ले
पाटल-अधर, नासिका-चंपा, कच-तमाल-कूले
मुक्तावलि मिस पंक्तिबद्ध सित बैठे है बगूले
कंज-कपोल, खड़ी कुंजों में नलिनी आँसू ले
प्यारे अंगु-प्रियंगु तुम्हीं से मिलने को फूले
साँस समीर-सुगंध बह रही, बाहुलता झूले
एक वियोग तुम्हारा साजन काँटे-सा हूले