bhakti ganga
तू है तो भय क्या!
जीवन-समर में मिली जय क्या! पराजय क्या!
क्षुब्ध, चिर-अशांत, चिर-निरवधि
कितना भी उमड़े यह महोदधि
सलिल का होगा कभी क्षय क्या!
लहरें बस भिन्न देखता मैं
धारा अविच्छिन्न देखता मैं
मेरे लिए सृष्टि क्या! प्रलय क्या!
तू है तो भय क्या!
जीवन-समर में मिली जय क्या! पराजय क्या!