bhakti ganga
अब यह घटा बरस ले जमके
मन रे! और खुले पथ तेरा ज्यों-ज्यों बिजली चमके
विष को हँस-हँस कर पीना है
गाते ही गाते जीना है
किसने तेरा सुख छीना है
चाहे बिना स्वयम् के!
दुख, संकट, नैराश्य, व्यथायें
जितनी भी आती हों, आयें
साहस क्या उनका, छू पायें
सुर ये अंतरतम के
चित् आनंदधाम है तेरा
मोह, शोक का वहाँ न डेरा
जिनके भय ने तुझको घेरा
वे तमचर हैं भ्रम के
अब यह घटा बरस ले जमके
मन रे! और खुले पथ तेरा ज्यों-ज्यों बिजली चमके