bhakti ganga
पूछते भी अब तो डरता हूँ
तेरी किस उद्देश्य-पूर्ति को मैं जीता-मरता हूँ
सभा काल-विषधर से घेरी
क्षणिक दीप्ति, फिर रात अँधेरी
किसे दिखाने लीला तेरी
यह अभिनय करता हूँ?
जब आता हूँ यहाँ दुबारा
पिछला पाठ भूलता सारा
फिर नव बहा राग-रसधारा
क्यों ये सुर भरता हूँ?
सच कह दूँ तो इस छविगृह में
प्राण सदा रहते हैं सहमे
तेरी ही स्मृति कर रह-रह मैं
बस धीरज धरता हूँ
पूछते भी अब तो डरता हूँ
तेरी किस उद्देश्य-पूर्ति को मैं जीता-मरता हूँ