bhakti ganga
बरसो, हे करुणा के जलधर!
मुझे बहा ले चलो, नाथ ! आनंद-सिन्धु के तट पर!
मेरे मन-प्राणों पर प्रतिक्षण
बरसो सावन की फुहार बन
धन्य बने, प्रभु ! मानव-जीवन
कृपा तुम्हारी पाकर
देखूँ झाँकी वृन्दावन की
राधा-माधव-प्रीति मिलन की
मैंने जो छवि युगल वरण की
गीतों में हो भास्वर
बरसो यों, मेरे अंतर से
फूट चलें स्वर के निर्झर-से
अक्षर-अक्षर से रस बरसे
रुके न धारा पल भर
बरसो, हे करुणा के जलधर!
मुझे बहा ले चलो, नाथ ! आनंद-सिन्धु के तट पर!