bhakti ganga
मेरा अंत न होगा
पतझड़ के पत्तों से ओझल कभी वसंत न होगा
मेरे सिर पर तना हुआ है स्नेह-वितान किसीका
तिल भर ओट न होने देता मुझको ध्यान किसीका
उसकी कृपा-किरण से मेरा शून्य दिगंत न होगा
मैं तो धरती का अंकुर हूँ, नया नया फूटूँगा
रंग उषा के जावक का मैं, कभी नहीं छूटूँगा
मेरी नख-नखतावली-अंकित गगन अनंत न होगा!
मेरी आयु चुराकर क्षण-क्षण काल अमरता पाता
मर-मर कर जीता जाता मैं मिट-मिट कर मुस्काता
अमृत-मूल, फल-फूल-विवर्जित मेरा वृंत न होगा
मेरा अंत न होगा
पतझड़ के पत्तों से ओझल कभी वसंत न होगा