bhakti ganga

एक सच्चा तेरा नाता है
बाकी तो सब कुछ सपने-सा मिटता ही जाता है

जो भी फूल तनिक मुस्काता
कर से छूते ही कुम्हलाता
बस जब तुझ पर ध्यान लगाता

मन विराम पाता है

भूमि-गगन-रवि-शशि-ग्रह-तारे
जिसको ढूँढ़ ढूँढ़ कर हारे
शब्दों में निज बाँह पसारे

वह मुझ तक आता है

घड़ी-दो-घड़ी खेल कूद कर
लौट चुका हूँ मैं अपने घर
अब सुरधनुषी तितली का पर

मुझे नहीं भाता है

एक सच्चा तेरा नाता है
बाकी तो सब कुछ सपने-सा मिटता ही जाता है