bhakti ganga
हम तो रँगे प्रेम के रँग में
चिंता क्या, यदि मोल नहीं इन अश्रुकणों का जग में!
मार्ग और ही बतलाते हैं
जिससे लोग पहुँच पाते हैं
पर हम तो कतरा जाते हैं
लक्ष्य देखकर पग में
हमने मन को वहाँ लगाया
पड़ी न जहाँ काल की छाया
पाकर भी जग ने क्या पाया
कुछ भी गया न संग में
हम तो रँगे प्रेम के रँग में
चिंता क्या, यदि मोल नहीं इन अश्रुकणों का जग में!