bhakti ganga
हमारी टूट गयी है डोर
और हाथ को हाथ न सूझे ऐसा तम घनघोर
सूरज चाँद जहाँ सकुचे हैं
अब तक भी न कहीं पहुँचे हैं
क्यों मन को वे मार्ग रुचे हैं
जिनका ओर न छोर?
जब चलकर गुम ही होना था
क्यों अपना संबल खोना था
हमें प्रेम में थिर होना था
जैसे मुग्ध चकोर
हमारी टूट गयी है डोर
और हाथ को हाथ न सूझे ऐसा तम घनघोर