bhakti ganga
अंतर से मत जाना
यह संसार भुला भी दे पर तुम मन से न भुलाना
भाग्य भले ही मुझसे ऐंठे
कभी, कहीं सुर-ताल न बैठे
फिर भी तुम प्राणों में पैठे
मंद-मंद मुस्काना
बनकर पिता, बंधु, गुरु, सहचर
देते रहना बोध निरंतर
और शेष का पथ आने पर
बढ़कर गले लगाना
अंतर से मत जाना
यह संसार भुला भी दे पर तुम मन से न भुलाना