bhakti ganga
अच्छे रहे मन से जो तुम्हारे ही रहे
सदा किनारे-किनारे ही रहे
काम उनके पास भी आया था,
पर वह बगल से निकल गया था
उन्हें छू नहीं पाया था।
फूल भी जैसे उनके लिए दहकते हुए अंगारे ही रहे
हमने बार-बार उन्हें सराहा था
जो यश और वैभव से परे थे
उन्हें शब्दों से बाँधना चाहा था
वे मुस्कराये तो सही पर मौन धारे ही रहे
और जब विदा की घड़ी आयी थी,
वे सहर्ष उठ खड़े हुए,
उन्होंने ज़रा भी भीरुता नहीं दिखायी थी।
संसार में रहकर भी वे संसार से न्यारे ही रहे
अच्छे रहे मन से जो तुम्हारे ही रहे
सदा किनारे-किनारे ही रहे