bhakti ganga
जाने कौन व्यथा जीवन की!
जग ने तो देखी है केवल रेखायें दर्पण की
भरा हुआ भी जग सूना है
सुख में दुख होता दूना है
मुझे अगम वह तट छूना है
भीति न जहाँ मरण की
जब भी सिद्धि सामने आयी
मैंने यद्यपि दृष्टि फिरायी
छोड़ी वस्तु जहाँ जो पायी
छुटी न तृष्णा मन की
जाने कौन व्यथा जीवन की!
जग ने तो देखी है केवल रेखायें दर्पण की