bhakti ganga

अपेक्षा जग में सबसे त्यागी
बदले में मैंने तो बस तेरी पदरज ही माँगी

धन, सम्मान, शक्ति के दावे
भुला मन के सभी भुलावे
तू सिर पर निज हाथ फिरावे

फिर-फिर यह धुन जागी

सागर-सा बड़वानल झेले
शशि-सा विषव्रण सहे अकेले
जो मुझ-सा पीड़ा से खेले

ऐसा कौन विरागी!

झूठी भाग-दौड़ अब छूटी
महामोह की निद्रा टूटी
मिली ह्रदय को शांति अनूठी

दुःख-भय-चिंता भागी

अपेक्षा जग में सबसे त्यागी
बदले में मैंने तो बस तेरी पदरज ही माँगी