bhakti ganga
तुम्हीं दुख में आड़े आते हो
जब भी फँसती नाव भँवर में, हाथ लगा जाते हो
लहरें जब भी सम्मुख दौड़ीं
मैंने डर कर डाँड़ें छोड़ीं
तट की झलक दिखाकर थोड़ी
साहस बँधवाते हो
भाँति-भाँति के खेल खिलाते
कभी हँसाते, कभी रुलाते
और अंग जब श्लथ हो जाते
बढ़ कर अपनाते हो
तुम्हीं दुख में आड़े आते हो
जब भी फँसती नाव भँवर में, हाथ लगा जाते हो