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प्रथम दृश्य

(स्टेशन का दृश्य, गाड़ी जा चुकी है। प्लेटफार्म की एक बेंच पर दो नवयुवक सुरेश और शिरीष बैठे हैं। दोनों के सूटकेसों पर एस. सिंह, गया, लिखा है।)

(शिरीष का नौकर काली आता है।)

काली – सरकार! कोई नहीं आया। विवाह के समय तो सुना है,बारात की अगवानी को पूरा शहर उमड़ पड़ा था, अब गौना के लिये आये हैं तो कोई बात भी पूछनेवाला नहीं।
सुरेश – अरे, जरूर कोई आया होगा, जरा ठीक से देख।सारे प्लेटफार्म पर आँखों की बरोनियों से झाड़ू लगा आया। दो औरतें बुरका पहने खड़ी हैं, उन्हें छोड़कर सभी के मुँह पर दो इंच गहरी दृष्टि गड़ाकर देख आया। कोई हो तब तो बोले!
शिरीष – एक बार फिर से देख आ, जरूर कोई आया होगा।
(काली जाता है ।)
सुरेश – तो आप ससुराल आये हैं। मैं तो सारी दुनियाँ को ही अपनी ससुराल समझता हूँ।
शिरीष – (आश्चर्य से) जी…..?
सुरेश – अजी बात यह है कि अभी तक विवाह तो हुआ नहीं, न जाने किस घर में किस बाला के साथ फेरे पड़ जायँ । कब किस किशोरी के हृदयाकाश पर मुझे देख कर प्रेम का मानसून घिर आयेगा, यह तो भारत सरकार का मौसम-सूचना-विभाग भी नहीं बता सकता। इसलिए दुनिया की हर कुमारी व्याहने-योग्य लड़की को मैं पत्नी की दृष्टि से ही देखता हूँ और उसके पिता का ससुर की तरह आदर करता हूँ।
शिरीष – विचित्र हैं आप। कहाँ से आना होता है?

सुरेश – गया से (शिरीष चौंकता है) धंधा बता दूँ तो आप चार हाथ दूर उछल कर खडे हो जायेंगे।

शिरीष – क्यात आप सी. बी. आई. के इंसपेक्टर हैं?

सुरेश – अजी नहीं, वह भी होता तो केवल चोर और उचक्के ही भड़कते, यहाँ तो सभ्य और भले आदमी भी मुझे देख कर जी चुराते हैं।

शिरीष – आतंकवादी हैं?

सुरेश – नहीं साहब! आतंकवादियों से बचानेवाला इंस्योरेंस का एजेंट। आपका जीवन-बीमा हुआ है या नहीं?

शिरीष – मेरा? नहीं तो।

सुरेश – बाल-बाल बच गये। कहीं गाड़ी लड़ जाती तो! आप जानते है आजकल किस तरह रेल की पटरियाँ उखाड़ी जा रही हैं। गाड़ी न भी लड़ती तो हैजा, प्लेग है औरं टी.बी. के कीटाणु तो थे ही।

शिरीष – आप भी खूब हैं। .

सुरेश – तो कम-से-कम दस हजार का बीमा करवा लीजिए। बोलिए, निकालूँ प्रोपोजल फार्म ? मुनाफेवाला या बिना मुनाफेवाला, मुनाफेवाला ही ठीक रहेगा-

शिरीष – ठहरिए, मुझे सोचने का अवसर दीजिए!

सुरेश – विलंब घातक है, आज ही बीमा करवाएं।

शिरीष – अधिक नहीं, संध्या तक का समय दीजिए।

सुरेश – अरे भाई, संध्या तक क्याक नहीं हो सकता? धरती हिल सकती है, आकाश गिर सकता है, मान लीजिए आप ससुराल पहुँचें और वहाँ देखें कि सोफे पर आपकी श्रीमतीजी के नाम का कोई पत्र पड़ा है। स्वाभाविक और उचित है कि आप उसे उठा लें और पढ़ने लगें। मान लीजिये आपकी पत्नी का नाम शारदा हो और उस पत्र में लिखा हो-
प्यारी शारदा,
आज तुम मुझसे आँखें चुराकर ससुराल चली जाओगी। एक बनमानुस, बतदमीज, इंसान की शक्ल में शैतान भेड़िया तुम्हें अपने साथ ले जायेगा। मैं जानता हूँ कि शरीर उस बनलिवाब के हाथ में सौंप देने पर भी तुम्हारी आत्मा सदा मेरे पास ही मँडरायेगी। मुझे इसीका दुख रहेगा कि अब से तुम्हारा भोला-भाला, प्यारा-प्यारा मुखड़ा मेरे वक्ष पर नहीं टिकेगा, तुम्हारी गोल-गोल, गोरी-गोरी बाँहें अब से मेरे गले का हार नहीं बनेंगी, इत्यादि-इत्यादि, …. अब बताइए, ऐसा पत्र पढ़कर आप आत्महत्या करने से बाज आ सकते हैं! मैं कहता हूँ कि आप में तनिक भी आत्म-सम्मान की बू-बास होगी तो आप आत्महत्या करेंगे और अवश्य करेंगे।
(प्रोपोजल फार्म निकालकर)

हाँ तो देर न कीजिए | लीजिए, इस पत्र पर हस्ताक्षर कीजिए। समझिए, मृत्यु स्टेशन के बाहर खड़ी आपकी प्रतीक्षा कर रही है।
(शिरीष घबराकर हस्ताक्षर कर देता है।)
क्या? शिरीष कुमार? मेरा और आपका नाम तो करीब-करीब एक-सा ही है (प्रोपोजल फार्म रखता है) पैसों की कोई बात॑ नहीं। चेक से भी काम चलेगा। बस केवल दो सौ बत्तीस रुपये सत्तर पैसे का चेक लिख दें (शिरीष पिंड छुड़ाने को चेक लिख देता है)। आप कब लौटेंगे?

शिरीष – आज शाम को।

सुरेश – आज शाम को! ससुराल से इतनी जल्दी पगहा तुड़ाकर भागेंगे?
शिरीष – आज ही साइत बनती है। फिर पाँच वर्ष तक गौने की कोई साइत नहीं बनती।
(काली का प्रवेश)
काली – सरकार कुछ पता नहीं चला, कोई आया हो तो दिखायी दे। स्टेशन के बाहर दो एक पहिचानी हुई सुरतें भी दिखाई पड़ीं तो पास पहुँचने पर आइने से मुठभेड़ हुई। आपके ससुरजी तो विवाह करके ही पुत्री-ऋण से एकदम उऋण हो गये जान पड़ते हैं-
सुरेश – मैं भी तो किसी लिवानेवाले की ही प्रतीक्षा कर रहा हूँ। बैठिए, ढूँढ़ना ही है तो दोनों साथ ही ढूँढ़ेंगे। आप अपने ससुर महोदय का घर जानते हैं?

सुरेश – घर.-वगैरह कुछ नहीं जानता, बचपन में विवाह हुआ था, और नौकर भी पहली बार आया है। चिराग हुसैन की गली में मकान है।

सुरेश – ओह, मैं भी तो उसी गली में जाना चाहता हूँ। चलिए, चलिए, (शिरीष घबराया-सा उठता है, काली एक ओर से आकर उसके कान में कहता है) कोई उचक्का है, पिंड छुड़ाइए। कुछ हो गया तो बड़े सरकार सारा दोष मेरे ही सिर मढ़ेंगे।

(सामान उठाता है। दोनों जाते हैं।)

सुरेश – (हँसता है) वाह रे परमात्मा! तेरी लीला विचित्र है। ऐसे-ऐसे काठ के उल्लूओं को भी पत्नीं मिल जाती है, (व्यंग्य से) गौना कराने जा रहे है। न जाने मेरे ही चेहरे पर ऐसी कौन-सी दफा 44 लगी है कि कोई लड़की या उसका पिता इसकी ओर आँख ही नहीं उठाता।
(घबराये हुए दीवान का प्रवेश)

दीवान – ओह! बड़ी देर हो गयी, गाड़ी तो आकर चली भी गयी, ऐ भाई, ऐ, (टी. टी. बिना उनकी ओर देखे चला जाता है) (सहसा सुरेश की ओर देखकर) यही तो जान पड़ते हैं। (सूटकेस पर का नाम पढ़ता है) एस. कुमार, गया। यही हैं। (पास जाकर) जी, आपका आना कहाँ-से हुआ?.
सुरेश – अब जान पड़ता है ठाकुर साहब की नींद खुली है। मैं गया से आ रहा हूँ।
दीवान – आपका शुभ नाम?

सुरेश – बंदे को सुरेश कहते हैं।

दीवान – सुरेश? शिरीष? सुरेश? आप कहाँ जायँगे?

सुरेश – चिराग अली रोड में ठाकुर…

दीवान – (बात काटकर) बस, बस, माफ करें, बड़ी देर हो गयी। बात यह हुई कि रास्तें में ताँगा उलट गया और मेरा घुटना फूट गया। अस्पताल से दवा लगाकर स्टेशन की ओर चला तो देखा कि पर्स गायब | फिर वहीं से लौटकर रुपये लाने घर गया। देखिए ठाकुर साहब से मत कहिएगा, नहीं तो बस, (गोली छोड़ने का इशारा करता है।)

सुरेश – घबड़ाइए मत, आप आ गये इसीको मैं तो बहुत बड़ी बात समझता हूँ। आजकल इतना भी कौन करता है! चलिए मुझे बड़े जोर की भूख लगी है।

(दोनों जाते हैं)