diya jag ko tujhse jo paya

क्यों तू चिंता करे, अभागे!
क्यों न देखता रह असंग जो होता आगे-आगे!

क्या तेरे आँसू से धुलकर
मिट जायेंगे विधि के अक्षर!
क्यों भय की तलवार निरंतर

फिरता सिर पर टाँगे!

काल तुझे ग्रसने जब दौड़े
यदि न समर से तू मुँह मोड़े
बस परिणाम दैव पर छोड़े

क्या प्रभु तुझको त्यागे!

छोड़ व्यर्थ की आपाधापी
सौंप उसे ही यह मन पापी
निर्भय हो जा, भक्ति-सुधा पी

काट मोह के धागे

क्यों तू चिंता करे, अभागे!
क्यों न देखता रह असंग जो होता आगे-आगे!