diya jag ko tujhse jo paya

गाते-गाते तुझको पाऊँ
और न कुछ है इस जीवन में जिसपर आस टिकाऊँ

आयु विषय-भोगों में खोयी
पल न त्याग-तपवृत्ति सँजोयी
भक्ति न ज्ञान न साधन कोई

संबल जिसे बनाऊँ

लाया जो पाये थे कुछ स्वर
संभव, ये दें तुझे मुग्ध कर
लोग हँसे भी इस साहस पर

पर क्यों इन्हें छिपाऊँ!

निष्फल भी हों प्रत्याशायें
गीत न ये तुझ तक जा पायें
तो भी धन्य, गुणी यदि गायें

जग को कुछ दे जाऊँ

गाते-गाते तुझको पाऊँ
और न कुछ है इस जीवन में जिसपर आस टिकाऊँ