diya jag ko tujhse jo paya
सँभाला तेरी ही करुणा ने
मुँह फाड़े तूफ़ान बढ़ा था जब भी मुझे डुबाने
कोई युक्ति न जब चल पायी
एक तुझी पर आस टिकायी
नौका आप उबरती आयी
पा संबल अनजाने
दे स्वतन्त्र कर्मों की दीक्षा
तू लेता है कठिन परीक्षा
क्या कर ले तप, ज्ञान, तितिक्षा
मन यदि भक्ति न माने!
शब्द कभी कह सकते, मुझपर
जो तू करता कृपा निरंतर!
रहना प्रभु! यों ही जीवन भर
निज स्नेहांचल थामे
सँभाला तेरी ही करुणा ने
मुँह फाड़े तूफ़ान बढ़ा था जब भी मुझे डुबाने