ek chandrabimb thahra huwa

अप्राप्ति की अनुभूति में भी
एक विशेष सुख है,
भले ही मेरे प्राणों में एक अव्यक्त पीड़ा समायी है,
पोर-पोर में एक टीसता हुआ दुख है,
पर इस अतृप्ति के कारण ही तो
मेरे प्राणों से यह झंकार उठती है,
मेरा गीत-विहग
सतत आकाश की ओर उन्मुख है।