ek chandrabimb thahra huwa

प्रेम, भोग में नहीं
त्याग में है,
राग में नहीं
विराग में है।
जिसमें कुछ पाने की आशा हो
उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता,
प्रेम वही है जिसमें चिर-उपेक्षित रहकर भी
प्रेम किए बिना नहीं रहा जा सकता।
प्रेम त्याग की कसौटी है,
बलिदान की भाषा है,
सच पूछिए तो
यह प्रेमास्पद पर सब कुछ लुटा देने की अभिलाषा है।