ek chandrabimb thahra huwa

एक लहर तीर से लिपटकर बोली —
‘क्या मुझे पुन: सागर में लौट जाना होगा!
इस मधुर आलिंगन से वंचित होकर
शेष जीवन फिर करवटें बदलते हुए बिताना होगा!’
तीर कुछ उत्तर दे, इसके पूर्व ही
विदा की वेला आ गयी,
प्रश्न होठों पर लिये-लिये ही
प्रश्नकर्त्री शून्य में समा गई!