ek chandrabimb thahra huwa
लगता है हमारे बीच
कोई शीशे की दीवार खड़ी है
जो हमें एक दूसरे से मिलने नहीं देती
अन्यथा,
यों मुस्कुराती हुई आँखों से देखते हुए भी
क्या अब तक तुम मुझे
अपनी बाँहों में नहीं भर लेती!
फानूस के घेरे में
दीप-शिखा तो अंत तक
अपने को बचा ले जाती है
पर इससे पतंग के प्राणों की रक्षा
कहाँ हो पाती है!