ek chandrabimb thahra huwa
विदा के समय
कुछ कहने को उत्सुक,
तुम्हारी छलछलायी दृष्टि से गिरी एक बूँद
मैंने अपने रूमाल में छिपाकर रख ली थी,
भावनाओं की उफनती प्याली में से
एक बूँद चख ली थी;
मुझे ऐसा करते किसीने भी न देखा हो
पर तुमसे यह चोरी छिप नहीं पायी थी,
तभी तो उस करुण वेला में भी
मुँह मोड़कर तुम हल्की-सी मुस्करायी थी।