geet ratnavali

कैसा अद्भुत यह परिवर्तन!
किसी दिव्य आभा से अब है दीप्त आपका आनन

पास खड़े ऋषि-मुनि दिखते हैं
आप मग्न हो कुछ लिखते हैं
नयन नहीं मेरे टिकते हैं

उस छवि-सम्मुख दो क्षण

पता नहीं क्‍यों, भय-सा लगता
भाग्य कहीं न मुझे हो ठगता!
शंकित मन है धुँधला लगता

ज्यों सुहाग का दर्पण

ज्योति आज जो प्रभु में जागी
जिससे मलिन वासना भागी
क्यों न बनूँ मैं भी बड़भागी

उसकी सहभोगी बन!

कैसा अद्भुत यह परिवर्तन!
किसी दिव्य आभा से अब है दीप्त आपका आनन