geet vrindavan
न कोयल कूके वृन्दावन में
पूर्णचंद्र मत मुख दिखलाये राधा के आँगन में
काले कजरारे घन बरसें छिप कर ही सावन में
तड़ित न चमके, मृदु मृदंग-ध्वनि क्यों गूँजे क्षण- क्षण में
‘पी’ की माला जपे पपीहा, पर अपने ही मन में
उड़ कर जाये मोर द्वारिकापुर के राजभवन में
कटें बाँस के वन वंशी की तान न पड़े श्रवण में
पनघट को रुख़ करे न कोई आग लगे मधुवन में
न कोयल कूके वृन्दावन में
पूर्णचंद्र मत मुख दिखलाये राधा के आँगन में