geet vrindavan

राधा हरि को देख न पाती
यद्यपि आठ प्रहर कानों में मुरली की ध्वनि आती

यमुना-तट पर, वंशीवट पर
बेसुध-सी फिरती पनघट पर
उठ-उठकर सुर की आहट पर

वन को दौड़ी जाती

जहां गए थे श्याम छोड़कर
फिर-फिर जाकर उसी मोड़ पर
उँगली पर दिन जोड़-जोड़कर

आँसू विफल बहाती

जब सोते में भी हरि आये
शीश मुकुट पट पीट सजाये
भयवश, सपना टूट न जाए

पलकें नहीं उठाती

राधा हरि को देख न पाती
यद्यपि आठ प्रहर कानों में मुरली की ध्वनि आती