geet vrindavan
कितनी बदल गयी तू राधे!
बिना उठाये दृष्टि पास से जाती चुप्पी साधे
‘भूली जब कुंजों के भीतर
मिलती थी मुझसे छिप-छिपकर!
फिरती थी संग यमुना-तट पर
गाँठ प्रेम की बांधे !
‘चिर-पूजित जन-जन के द्वारा
शाश्वत है वह मिलन हमारा
दिखे भिन्न भी जीवन-धारा
प्रिये! मार्ग पर आधे’
सुनकर मधुर श्याम की वाणी
नयनों में भर आया पानी
बढ़ न सकी राधा अनजानी
सिर पर गठरी लादे
कितनी बदल गयी तू राधे!
बिना उठाये दृष्टि पास से जाती चुप्पी साधे