geet vrindavan

सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली

पिक ने देशनिकाला पाया
मोरों ने है नृत्य भुलाया
मधु ऋतु में भी फूल न आया

नंगी रहती डाली

‘दधि के मटके तोड़ गिरातीं
अब न गोपियाँ मथुरा जातीं
नित उठ देवी-देव मनातीं–

लौटे घर वनमाली

‘नाथ! आप यदि व्रज में आयें
दशा वहाँ की देख न पायें
हुई सूख काँटा वे गायें

जो निज कर से पालीं’

सूखा सावन,पूनो काली
रोती ही आती हैं व्रज में होली और दिवाली