geet vrindavan

द्वारिका में, प्रभु! सुख से सोते
और आपके प्रिय व्रजवासी, नाथ! रात-दिन रोते

गायों के मुख म्लान हुए हैं
हाट-बाट वीरान हुए हैं
वे मधुकुंज मसान हुए है

जहाँ रास थे होते

ग्वाल-बाल दर्शन को तरसे
जसुमति नहीं निकलती घर से
बाबा नन्द बने पत्थर से

खाते दुःख में गोते

और बात अपनी क्या बोलूँ!
शर से बिँधी मृगी-सी डोलूँ
गीता जभी आपकी खोलूँ

आँसू पृष्ठ भिगोते

द्वारिका में, प्रभु! सुख से सोते
और आपके प्रिय व्रजवासी, नाथ! रात-दिन रोते