ghazal ganga aur uski lahren

अदाओं की तेरी जादूगरी जानी नहीं जाती
नहीं जाती है मेरे दिल की हैरानी नहीं जाती

ये किस मंजिल पे ले आयी है तू, ऐ ज़िंदगी ! मुझको
कि अब सूरत भी मेरी मुझसे पहचानी नहीं जाती !

मुसाफिर ! लौटकर आने का फिर वादा तो करता जा
अगर कुछ और रुक जाने की ज़िद मानी नहीं जाती

ये माना, तू ही परदे से इशारे मुझको करता है
बिना देखे मगर दिल की परेशानी नहीं जाती

अगर है प्यार दिल में तो कभी सूरत भी दिखला दे
तेरे कूचे की मुझसे ख़ाक अब छानी नहीं जाती

कभी तड़पा ही देगी प्यार की ख़ुशबू , गुलाब! उसको
कोई भी आह तेरे दिल की बेमानी नहीं जाती