ghazal ganga aur uski lahren
1
अँधेरा था दिल में, अँधेरा था घर में
कोई रूप की चाँदनी लेके आया
2
अँधेरा लूटने आया है रोशनी का सुहाग
दिया कोई तो जला लो, बहुत उदास हूँ मैं
3
अँधेरी रात के परदे में झिलमिलाया किये
वे कौन थे, मेरे सपनों में आया-जाया किये !
4
अँधेरे ही अँधेरे होंगे आगे
पड़ाव अगला जहाँ कल शाम, लेंगे
5
अकेले आपके ही सर पे कुल इल्ज़ाम क्योंकर हो !
हमें तो हर जगह पत्थर ही पत्थर तोड़ना ठहरा
6
अक्ल को राह न मिल पायी ख़ुद अपने घर की
प्यार का अक्स सितारों की नज़र तक पहुँचा
7
अक्स हम उनका उतारा किये हैं काग़ज़ पर
कीजिए जब भी ज़रा गौर, नज़र आता है
8
अगर आप दिल से हमारे न होते
यों नज़रों से इतने इशारे न होते
9
अगर समझो तो मैं ही सब कहीं हूँ
नहीं समझो तो वैसे कुछ नहीं हूँ
10
अगर है प्यार दिल में तो कभी सूरत भी दिखला दे
तेरे कूचे की मुझसे ख़ाक अब छानी नहीं जाती
11
अच्छा है, आप बाग़ में चुप ही रहें, ‘गुलाब’ !
हँसते हैं लोग पाँच सवारों को देखकर
12
अटकी हुई है आके पुतलियों में अब ये जान
आओ कि अब तो भोर के तारे हुए हैं हम
13
अदाओं की तेरी जादूगरी जानी नहीं जाती
नहीं जाती है मेरे दिल की हैरानी, नहीं जाती
14
अदायें तेरी जो, ऐ ज़िंदगी ! सँभाल सके
कलेजा चाहिये पत्थर का, आदमी के लिये
15
अपना चेहरा भी किसी और का लगा है मुझे
आज दुश्मन की तरह आईना लगा है मुझे
16
अपनी नागिन-सी लटें खोल दी होंगी उसने
हम न होंगे तो क़यामत नहीं आयी होगी
17
अपनी पँखुरियों को छितराकर, आज गुलाब ये कहता था —
‘ख़ूब जिन्हें खिलना हो खिलें अब, हम तो हवा पे सवार हुए’
18
अपनी बेताबी से उनको बेख़बर समझे हैं हम
फिर भी कुछ है प्यार का उनपर असर, समझे हैं हम
19
अपने हाथों से ज़हर भी जो पिलाया होता !
ज़िंदगी ! तूने कभी रुख़ तो मिलाया होता !
20
अब इससे बढ़के कँटीली भी राह क्या होगी !
खिलो भी पाँव के छालो ! बहुत उदास हूँ मैं
21
अब उन हसीन अदाओं का रंग छूट गया
हमारे प्यार का सपना ही जैसे टूट गया
22
अब उन्हें किस तरह मनाया जाय
रंज हैं जो, हँसी भी आयी क्यों !
23
अब और कुछ बने न बने, ख़ुश हैं हम कि आज
बातें हमारी सुनके ही वे मुस्कुराये तो
24
अब कहाँ चाँद-सितारे हैं नज़र के आगे !
बस उस तरफ़ के किनारे हैं नज़र के आगे
25
अब कहाँ मिलने की सूरत रह गयी !
दिल में बस यादों की रंगत रह गयी
26
अब कोई प्यार की पहल तो करे
ज़िंदगी का सवाल हल तो करे
27
अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है !
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
28
अब क्यों भला किसीको हमारी तलाश हो !
गागर के लिये क्यों कोई पनघट उदास हो !
29
अब खुला राज़ कि इस लफ़्ज़ का मानी क्या है
पूछो अब आके मेरे दिल से जवानी क्या है
30
अब ख़ुशी क्या हो तेरे बाग़ में आने से, बहार !
देखता राह कोई फूल तो मुरझा ही गया
31
अब तो आईने में मुँह देखते घबराता हूँ
हाय ! मुझको लगी किस शख़्स की हत्यारी नज़र !
32
अब तो कहते हैं कि भाते ही नहीं हमको गुलाब
आपके दिल को कभी था ये वहम, भूल गये !
33
अब तो छाया भी साथ छोड़ रही
धूप जीवन की सर पे आ ही गयी
34
अब तो बगिया से जा रहे हैं गुलाब
जिनको मिलना हो आके मिल जायें
35
अब तो पतझड़ है शायद, गुलाब !
ठाठ पत्तों का झीना हुआ
36
अब तो यह ज़िंदगी आपकी हो गयी
भूल जो भी हुई थी, सही हो गयी
37
अब तो, ‘गुलाब’ ! उन आँखों में ही
तुमको सुबह से शाम हुई है
38
अब न चल पायेगा, दुनिया ! तेरा जादू मुझ पर
जुड़ गया है तेरे मालिक से ही रिश्ता मेरा
39
अब न जाने की करो बात, क़रीब आ जाओ
ख़त्म होगी न ये बरसात, क़रीब आ जाओ
40
अब न वे फूल हैं , वे बहारें, तितलियाँ वे न भौंरों की पाँतें
तुम खिले हो गुलाब अब भी लेकिन बाग़ वह प्यारा-प्यारा नहीं है
41
अब भी उन्हीं बहार के रंगों में हैं गुलाब
हैं आपकी नज़र से उतारे हुए तो क्या !
42
अब ये छोटा-सा सफ़र ख़त्म हुआ ही समझें
बुलबुले उठके किनारों से बात करते हैं
43
अब ये प्याला भी छलका तो क्या !
उम्र कट ही गयी बेपिये
44
अब हमारे वास्ते दुनिया ठहर जाये तो क्या !
बाद मर जाने के, जी को चैन भी आये तो क्या !
45
अब है कहाँ वो जोश कि बाँहों में बाँध लें !
आ-आ के जा रही है लहर, देख रहे हैं
46
अबकी न ज़िंदगी को परखने में होगी भूल
फिर से शुरू करेंगे कहानी वहीं से हम
47
अभी गुलाब की ख़ुशबू भी जी को भाती नहीं
अभी तो कूक ही कोयल की उनके कान में है
48
अभी तो कहते हैं – ‘दे देंगे जान’, पर देखें
पहुँच गये तो वहाँ जान ही रहे न रहे
49
अभी तो छाँह-सी उतरी थी एक दिल में, मगर
नज़र को मैंने जो फेरा, कहीं भी कोई नहीं
50
अभी तो बहुत दूर थी दिल की मंज़िल
रुके क्यों क़दम राह पर चलते-चलते !
51
अभी तो राह में काँटे बिछा रहा है, गुलाब !
कभी ये बाग़ तुझे देखने को तरसेगा
52
अभी तो हमने लगाया था डायरी को हाथ
लजाते देख उन्हें मुस्कुराके छोड़ दिया
53
अभी से मोड़ न मुँह, बेरहम ! अभी तो नहीं
भरा है जी तेरी अँगड़ाइयों में जीने से
54
असर कुछ प्यार में है तो लिपट जायेगा सीने से
मिटें हम और कोई देखता हो, हो नहीं सकता
55
आ गयी किस घाट पर यह नाव दिन ढलते हुए !
धार के साथी सभी मुँह फेरकर चलते हुए
56
आ, कि अब भोर की यह आख़िरी महफ़िल बैठे
पहले तू बैठ, तेरे बाद मेरा दिल बैठे
57
आँखें उठाके आज न देखो गुलाब को
ख़ुशबू मगर न दूसरी भायेगी मेरे बाद
58
आँखें भरी-भरी मेरी, कुछ और नहीं है
आँसू में है ख़ुशी मेरी, कुछ और नहीं है
59
आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या !
कह न सके थे जो कभी, मस्ती में आके कह गये !
60
आँखों-आँखों मुस्कुराना ख़ूब है !
प्यार यह हमसे छिपाना ख़ूब है !
61
आँखों-आँखों में इशारा करके आँखें मूँद लीं
रुकके दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम
62
आँखों-आँखों में ही दोस्ती हो गयी
होंठ खोले न थे, बात भी हो गयी
63
आँखों-आँखों ही लिपट जाते गले से आपके
आप अब आये हैं जब इतना भी दम में दम नहीं
64
आँधियो ! हाज़िर है अब यह फूल झड़ने के लिये
यह मेहरबानी बहुत थी, हमको खिल जाने दिया
65
आँधी वो चली है, फूल तो क्या, बाग़ों का पता चलता ही नहीं
तितली के परों पर उड़ती हुई शबनम की निशानी, क्या कहिए !
66
आँसुओं में दी बहा याद हमारी उसने
कोई काँटा न रहा मन में, जो हुआ सो ठीक
67
आईना ख़ुद ही टूट गया था
मुफ़्त नज़र बदनाम हुई है
68
आईने में जब उसने अपना चाँद-सा मुखड़ा देखा होगा
बाग़ में कोयल कूकी होगी, गुंचा-गुंचा फूटा होगा
69
आओ कुछ देर गले लग लें, ठहरके
होते यहीं से अलग रास्ते सफ़र के
70
आकर कभी जो देख भी लेते गुलाब को
रंग उनका इस तरह कभी फीका नहीं होता
71
आख़िर आ ही गये हम आपके पास
एक तिनके के सहारे, क्या ख़ूब !
72
आख़िर इस दिल की पुकारों में तुझको देख लिया
डूबते वक़्त किनारों में तुझको देख लिया
73
आख़िरी वक़्त देख तो लें गुलाब
रुख़ से परदा ज़रा उठा देना
74
आख़िरी वक़्त निगाहों में खिल उठे थे गुलाब
उनकी महफ़िल में चली बात हमारी कब थी !
75
आग जो दिल में फतिंगे के है दीपक में वही
वह है जलने के लिये, यह है जलाने के लिये
76
आज उन सुर्ख़ होंठों की फड़कन
एक अहम बात पर आ थमी है
77
आज ऊँचे पे खिल रहे हैं गुलाब
उनको काँटे चुभे न बाँहों में
78
आज की रात तो हर रंग में खिलते हैं गुलाब
फ़िक्र कल की किसे, आयें कि नहीं आयें हम !
79
आज जी चाहे जहाँ सज लो, खिल रहा है गुलाब
फिर नहीं बाग़ में आयेगा कोई फूल ऐसा
80
आज तुझसे वे निगाहें भी मिल रही हों, ‘गुलाब’ !
उनके मिलने का तो अंदाज़ बदल जाता है
81
आज तो धुन है पहुँचने की उनके पास, मगर
चैन सचमुच कभी पायेंगे वहाँ, कौन कहे !
82
आज तो मन की प्यास बुझा दो, कल हों कहाँ हम, किसको पता !
डाल में फिर से जुड़ न सकेंगे टूटे हुए पीपल के पात
83
आज तो मिलती है उन आँखों की ख़ुशबू दूर से
क्या पता कल राह में यह भी सहारा हो, न हो !
84
आज तो शीशे को पत्थर पे बिखर जाने दे
दिल को रो लेंगे, ये दुनिया तो सँवर जाने दे
85
आज दुलहन को बुलावा है घर पे साजन के
माँग सखियों ने सँवारी है, इसे कुछ न कहो
86
आज पहले-सी वह बहार कहाँ !
किसने रंगत गुलाब की ले ली !
87
आज भाती हो न उसको तेरी पँखुरियाँ, गुलाब !
कल मचेगी धूम दुनिया भर में इस सौग़ात की
88
आज मिल जायँ जिनको मिलना है
फिर यहाँ कौन इसके बाद आया !
89
आज हो चाहे दूर भी जाना, मेरे साथी, मेरे मीत !
लौटके फिर इस राह से आना, मेरे साथी, मेरे मीत !
90
आज होंठों पे खिल रहे हैं गुलाब
मेरी ग़ज़लों को गा रहा है कोई
91
आता नहीं है भूलके कोई भी अब इधर
हर प्यार की नज़र से उतारे हुए हैं हम
92
आती नहीं है प्यार की ख़ुशबू कहीं से आज
लगता है अब गुलाब का खिलना ही कम हुआ
93
आते न छोड़कर कभी हम जिसको उम्र भर
मंज़िल कोई ऐसी भी एक आयी थी राह में
94
आते हैं किस अदा से वे घर पर हमारे आज
कहते हुए– ‘आने का इरादा तो नहीं है !’
95
आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज
ज़िंदगी ! शीशा तेरा फूटा हुआ लगता है आज
96
आने की ख़बर सुनकर जिसकी, धड़कन है बढ़ी जाती दिल की
है आज उसी बेदर्द को यह नाड़ी भी दिखानी, क्या कहिए !
97
आप अपना जवाब थे ख़ुद ही
हम न होते तो क्या कमी होती !
98
आप आयें न अगर हमको बुला सकते हैं
हमको फ़ुरसत है बहुत, आपको फ़ुरसत न सही
99
आप और घर पे हमारे, क्या ख़ूब !
दिन में उग आये हैं तारे, क्या ख़ूब !
100
आप क्यों जान को यह रोग लगा लेते हैं !
वे तो बस वैसे ही फूलों की हवा लेते हैं
101
आप क्यों दिल के तड़पने का बुरा मान गये !
आपसे कुछ नहीं कहते हैं, हम तो चुप ही हैं
102
आप क्यों दिल को बचाते हैं यों टकराने से !
ये वो प्याला है जो भरता है छलक जाने से
103
आप क्यों देखके आईना मुँह फिरा बैठे !
लीजिए, आपकी चर्चा ही छोड़ दी हमने
104
आप नज़रें फिरा लें तो क्या !
आपके हो चुके हैं गुलाब
105
आप रंगों से भरी डाल पे फूलें न, गुलाब !
सर भी नागिन ये उठाती है हर क़दम के साथ
106
आप लगा लें जो मुँह पे नक़ाब
क्या है भला दर्पन का क़सूर
107
आप सुन लेते कभी अपनी भी धड़कन उसमें
हाथ दिल पर मेरे धीरे से लगाया होता !
108
आप, हम और कुछ भी नहीं !
सब वहम, और कुछ भी नहीं !
109
आपका एक इशारा तो हो !
कोई जीने का सहारा तो हो !
110
आपका दर न सही, राह का पत्थर ही सही
हमको हर हाल में होना तबाह है कि नहीं !
111
आपकी नज़रों में माना, हैं वही मस्ती के रंग
पर जो दीवाना बना दे दिल को, वह मौसम नहीं
112
आपके दिल में हमारी भी चाह है कि नहीं !
कहीं आगे भी सितारों के राह है कि नहीं !
113
आपके प्यार की पहचान माँगते थे लोग
सर हम अपना न कटाते तो और क्या करते !
114
आपको याद हमारी भी तो आयी होगी
नाम मुँह पर नहीं आया है, कोई बात नहीं
115
आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिये, हिसाब नहीं
116
आपने घूँघट भी न उठाया
और ये रात तमाम हुई है
117
आपने ज़िंदगी न दी होती
क्यों ये मरने की बेकली होती !
118
आपने तो बहुत छूट दी
प्यास मेरी डुबोके रही
119
आया न काम कुछ यहाँ लहरों से जूझना
ख़ुद नाव बन गयी है भँवर, देख रहे हैं
120
आयी न हो हमारी कहीं, रात, उनको याद !
शबनम के भी निशान हैं फूलों की राह में
121
आये जब ताब देखने की नहीं
ख़ूब दर्शन नसीब होता है !
122
आये तो यहाँ, इतना ही बहुत, अब आप ख़ुशी से रुख़सत हों
इस दिल को तड़पते रहने की आदत है पुरानी, क्या कहिए !
123
आये थे जो बड़े ही ताव के साथ
बह गये वक़्त के बहाव के साथ
124
आये, बैठे, उठे, चल दिये
बेरहम ! और कुछ भी नहीं
125
आये भी लोग आपसे मिलकर चले गये
देखा किये हैं दूर खड़े अजनबी-से हम
127
आयेंगी आँखों में क्या-क्या सूरतें !
दिल मचलता ही रहेगा रात भर
126
आयेगा कुछ नज़र तो कहेंगे पुकारकर
आँखें मिला रहे हैं अभी ज़िंदगी से हम
128
आशा की हर किरन को अँधेरों ने ढँक लिया
किन बेरहम घटाओं के मारे हुए हैं हम !
129
आहट तो उनकी आयी पर आँखें हुईं न चार
रातें हमारी कट गयीं ऐसे ही हाल में