ghazal ganga aur uski lahren
1036
न चमक है मुख पर, न कोई लय, नहीं अलविदा का भी होश है
ये सफ़र वे कैसे करेंगे तय, जो क़दम उठाते ही डर गये !
1037
न छेड़ो इसे भावना रो पड़ेगी
ये पहले ही से चोट खायी हुई है
1038
न छोड़ यों मुझे, ऐ मेरी ज़िंदगी ! बेसाज़
कभी तो मैं भी, अदाओं का तेरी था हमराज़
1039
न जिसके शुरू आख़िरी के हैं पन्ने
किताब एक ऐसी पढ़े जा रहे हैं
1040
न था दिल का कोई ख़रीदार तो क्या !
चले सबसे हम राह पर मिलते-मिलते
1041
न बाग़ है, नहीं भौंरे, न तितलियाँ, न गुलाब
उठा वसंत का डेरा, कहीं भी कोई नहीं
1042
न मौत के लिये आये न ज़िंदगी के लिये
तड़पने आये हैं दुनिया में दो घड़ी के लिये
1043
न यों मुँह फेरकर सो जा, मेरी तक़दीर के मालिक !
कहानी ज़िंदगी की फिर से दुहरायी नहीं जाती
1044
न राह देखती आशा का दम ही घुट जाये
कहीं पे दिल में झरोखा बनाके रक्खा है
1045
न रोकते हैं निगाहों से यहाँ पीने से
मगर मना है लगा लेना उनको सीने से
1046
न होंठ तक कभी आयी, न मन के द्वार गयी
वो एक बात मेरी चेतना सँवार गयी
1047
न होता दिल हमारा तो निशाना तुम किसे करते !
हमींने तीर चलवाये, हमें भी याद कर लेना
1048
नज़र अब उनसे मिलाने की बात कौन करे !
ख़ुद अपने घर को लुटाने की बात कौन करे !
1049
नज़र आईना, रूप भी आईना है
मगर बीच में यह बताओ तो क्या है !
1050
नज़र आईने से मिलाता तो होगा !
कभी वह भी घूँघट उठाता तो होगा !
1051
नज़र उनसे छिपकर मिलायी गयी है
बचाते हुए चोट खायी गयी है
1052
नज़र खोयी-खोयी, क़दम लड़खड़ाये
तुम्हारी भी यह क्या दशा बन गयी है !
1053
नज़र तो उनकी हमें देखके शरमा ही गयी
झलक भी प्यार की पलकों से छनके आ ही गयी
1054
नज़र नज़र से ही टकराये, और कुछ मत हो
कभी तो हमसे वो शरमाये, और कुछ मत हो
1055
नज़र से दूर भी जाकर हैं उनके पास बहुत
गुलाब प्यार के गीतों में छिपके आया किये
1056
नज़र से दूर भी जाने से कोई दूर न था
हमारा दिल भी निशाने से कोई दूर न था
1057
नज़र से होंठ पर, होंठों से दिल में जा पहुँचा
इनाम और क्या पाता भला मैं इसके सिवा
1058
नज़रें मिलीं तो मिलके झुकीं, झुकके मुड़ गयीं
यह बेबसी कि आँख का कोना न नम हुआ
1059
नये सिरे से सजायेगे ज़िंदगी को आज
फिर अपने पास बुला लो, बहुत उदास हूँ मैं
1060
नशा प्यार का आज टूटे तो टूटे
ये खँडहर है, अब कोई लूटे तो लूटे
1061
नशे में प्यार के लिखते रहे हैं कविता हम
पता नहीं कि उन्हें कह गये हैं क्या-क्या हम
1062
नशे-नशे में उन्हें कह दिया है क्या हमने !
वे आज हमसे निगाहें मिला न पाये हैं
1063
नश्तर चुभाके दिल के वे होते गये क़रीब
कहते गये हम ‘और’-‘और’ ‘आह’-‘आह’ में
1064
नसीब हो न सका चैन दो घड़ी के लिये
किसीने दिल का कोई छू दिया था तार कभी
1065
नहीं अब, ‘गुलाब’ ! तुझमें पहले-सी शोख़ियाँ हों
तेरी तड़पनों से कुछ तो दुनिया सँवर गयी है
1066
नहीं आया जवाब उनका तो हम ख़ुशकिस्मती समझे
रहा तो दिल में हरदम, ‘उनसे कोई काम बाक़ी है’
1067
नहीं इस दर्द का उनको पता हो, हो नहीं सकता
कोई दिल की लगी से अनछुआ हो, हो नहीं सकता
1068
नहीं उनको अब है भाती, ये महक गुलाब की भी
वही धूल में पड़ा है जो गले का हार होता
1069
नहीं उनको दिल से भुलाया है हमने
कई बार यों तो क़दम डगमगाये
1070
नहीं एक अपनी व्यथा कह गये
अखिल विश्व की हम कथा कह गये
1071
नहीं एक ऐसे तुम्हीं यहाँ, जिसे प्यार मिल न सका कभी
कई लोग पहले भी आये थे, यही चोट खाके चले गये
1072
नहीं एक दिल की लगी छूटती है
भले ही भरी ज़िंदगी छूटती है
1073
नहीं किसीसे भी मिलता है अब मिज़ाज इसका
कुछ इस तरह था छुआ उसने मेरे दिल का साज़
1074
नहीं कोई भी मरने के सिवा अब काम बाक़ी है
हमारी ज़िंदगी में बस वही एक शाम बाक़ी है
1075
नहीं ख़त्म भी हो सफ़र चलते-चलते
कभी मिल ही लेंगे मगर चलते-चलते
1076
नहीं खेल है उनकी आँखों को पढ़ना
कि मिलती है दिल की ख़बर मिलते-मिलते
1077
नहीं जाती, गुलाब ! उन शोख़ रातों की महक दिल से
हमारे आईने से अब वो परछाईं नहीं जाती
1078
नहीं जो प्यार हो हमसे तो दोस्ती ही सही
ग़रज़ कि कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का
1079
नहीं था खेल, यह माना कि चाँद को छूना
अगर वे साथ निभाते तो कोई दूर न था
1080
नहीं दुख ये भार होता, न ये इंतज़ार होता
कभी ज़िंदगी ! मुझे भी तेरा एतबार होता
1081
नहीं निशान भी तेरा, कहीं भी कोई नहीं
घिरा है घेरे में घेरा, कहीं भी कोई नहीं
1082
नहीं प्यार होता जो उनको किसीसे
तो आँचल में ये चाँद-तारे न होते
1083
नहीं मुड़के देखे इधर जानेवाला
मगर दिल में आँसू बहाता तो होगा !
1084
नहीं रहे हैं वही वह कि मैं ही मैं न रहा
न साँझ वह न सवेरा, कहीं भी कोई नहीं
1085
नहीं हटता है पल भी लाज का परदा उन आँखों से
इशारों में ही दिल की बात हम कैसे भला समझें !
1086
नहीं है कोई और तो साथ मेरे
ये किसकी हँसी पर हँसी छूटती है !
1087
नाच न देखे कोई, क्यों मोर को ग़म हो, वह तो
ख़ुश इसी में है कि सावन का महीना आया
1088
नाज़ुकी इसकी उठाती नहीं शब्दों का बोझ
प्यार की बात इशारों में ही चलती देखी
1089
नाम यों तो सभी के बाद आया
उनको हरदम था मैं ही याद आया
1090
नाव इस तरह भँवर के न लगाती फेरे
दिल में माँझी के अगर प्यार भी थोड़ा होता !
1091
नाहक़ प्यार का दम भरना है
कल ये बोल पराये होंगे
1092
निगाहें बढ़के लिपटती रहीं निगाहों से
चले तो वक़्त नहीं था गले लगाने का
1093
निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो
अँधेरी रात है, कोई दिया जलाते चलो
1094
निशान आपके क़दमों के मिल न पाते हों
निशान सर की रगड़ से बना रहा हूँ मैं
1095
नींद मेरी थी प्यार का बचपन
मैं जगा तो जवान प्यार है आज