ghazal ganga aur uski lahren
अब खुला राज़ कि इस लफ़्ज़ का मानी क्या है
पूछो अब आके मेरे दिल से जवानी क्या है
यह तो बतलाओ कि हम कैसे फिर मिलेंगे यहाँ
तीर पर लौटती लहरों की चिन्हानी क्या है !
सिवा मेरे भगीरथ है कौन, हिंदी-ग़ज़ल-गंगा का !
न्याय तो होगा कभी, दूध क्या, पानी क्या है !
प्यार तो प्यार ही है, दिल ने या आँखों ने कहा
खोज बेकार है, ‘क्या सच है, कहानी क्या है’
बाग़ तो झूम रहा है तेरी ख़ुशबू से, गुलाब !
बाग़वाँ ने अगर मानी कि न मानी, क्या है !