ghazal ganga aur uski lahren
कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है
ये कमाल है तेरे हुस्न का कि नज़र का मेरी फ़ितूर है !
तू भले ही हाथ न थाम ले, कभी मुझको अपना पता तो दे
कि भटक न जाऊँ मैं राह में, तेरा दर बहुत अभी दूर है
जो ख़याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे!
तू ख़ुदा भले ही रहा करे, मुझे नाख़ुदा पे ग़रूर है
इसे देखना भी नहीं था जो, तो जलायी थी ये शमा ही क्यों !
मेरे दिल को भा गयी इसकी लौ, तो बता ये किसका क़सूर है
जिसे तूने था कभी छू दिया, वो गुलाब और गुलाब था
कहूँ अपने दिल को मगर मैं क्या, जो नशे में आज भी चूर है !