kagaz ki naao

मेरे शब्द

एक दिन शब्द मेरी कृतियों के
खीँच तलवार यों मुझसे बोले

‘अब तो आज्ञा दें हमें लड़ने की
आप क्‍यों बस रहें पुस्तक खोले

‘हमने अब तक बहुत सहा लेकिन
और अन्याय सह नहीं सकते
आप छिपकर रहें भले ही, मगर
हम तो गुमनाम रह नहीं सकते

‘हमने भावों की फौज लेकर अब
भेज दी हैं चुनौतियाँ सब ओर
जिसमें साहस हो निपट ले आकर
देखें, कितना है बाजुओं में जोर!’

दिसम्बर 08